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॥ दोहा ॥

श्री गुरुपद सुमिरण करूँ, गौरीनंदन ध्याय ।
वरणऊ माता जीण यश , चरणों शीश नवाय ॥
झांकी की अद्भुत छवि , शोभा कही न जाय ।
जो नित सुमरे माय को , कष्ट दूर हो जाय ॥

॥ चौपाई ॥

जय श्री जीणभक्त सुखकारी । नमो नमो भक्तन हितकारी ॥
दुर्गा की तुम हो अवतारा । सकल कष्ट तु मेट हमारा ॥

महाभयंकर तेज तुम्हारा। महिषासुर सा दुष्ट संहारा ॥
कंचन छत्र शिष पर सोहे । देखत रूप चराचर मोहे॥

तुम क्षत्रीधर तनधर लिन्हां । भक्तों के सब कारज किन्हां ॥
महाशक्ति तुम सुन्दर बाला । डरपत भूत प्रेत जम काला ॥

ब्रहमा विष्णु शंकर ध्यावे । ऋषि मुनि कोई पार न पावे ॥
तुम गौरी तुम शारदा काली । रमा लक्ष्मी तुम कपपाली॥

जगदम्बा भवरों की रानी । मैया मात तू महाभवानी ॥
सत पर तजे जीण तुम गेहा । त्यागा सब से क्षण में नेहा ॥

महातपस्या करनी ठानी । हरष खास था भाई ज्ञानी ॥
पिछे से आकर समझाई । घर वापिस चल माँ की जाई॥

बहुत कही पर एक ना मानी । तब हरसा यूँ उचरी बानी ॥
मैं भी बाई घर नहीं जाऊँ । तेरे साथ राम गुण गाऊँ॥

अलग अलग तप स्थल किन्हां । रैन दिवस तप मैं चितदीन्हा ॥
तुम तप कर दुर्गात्व पाया । हरषनाथ भैरू बन छाया ॥

वाहन सिंह खडक कर चमके । महातेज बिजली सा दमके ॥
चक्र गदा त्रिशूल विराजे । भागे दुष्ट जब दुर्गा जागे ॥

मुगल बादशाह चढकर आया । सेना बहुत सजाकर लाया॥
भैरव का मंदिर तुड़वाया । फिर वो इस मंदिर पर धाया ॥

यह देख पुजारी घबराये । करी स्तुति मात जगाये॥
तब माता तु भौरें छोडे । सेना सहित भागे घोड़े ॥

बल का तेज देख घबराया । जा चरणों में शीश नवाया ॥
क्षमा याचना किन्हीं भारी । काट जीण मेरी सब बेमारी ॥

सोने का वो छत्र चढ़ाया । तेल सवामन और बंधाया ॥
चमक रही कलयुग में माई । तीन लोक में महिमा छाई॥

जो कोई तेरे मंदिर आवे । सच्चे मन से भोग लगावे॥
रोली वस्त्र कपूर चढ़ावे । मनवांछित पूर्ण फल पावे ॥

करे आरती भजन सुनावे । सो नर शोभा जग में पावे ॥
शेखा वाटी धाम तुम्हारा । सुन्दर शोभा नहीं सुम्हारा ॥

अश्विन मास नौराता माही । कई यात्री आवे जाही ॥
देश – देश से आवे रेला । चैत मास में लागे मेला ॥

आवे ऊँट कार बस लारी । भीड़ लगे मेला में भारी ॥
साज – बाज से करते गाना । कई मर्द और कई जनाना ॥

जात झडुला चढे अपारा । सवामणी का पाऊ न पारा ॥
मदिरा में रहती मतवाली । जय जगदम्बा जय महाकाली ॥

जो कोई तुम्हरे दर्शन पावे । मौज करे जुग – जुग सुख पावे ॥
तुम्ही हमारी पितु और माता । भक्ति शक्ति दो हे दाता ॥

जीण चालीसा जो कोई गावे । सो सत पाठ करे करवावे। ॥
मैया नैया पार लगावे । सेवक चरणों में चित् लावे ॥

॥ दोहा ॥

जय दुर्गा जय अंबिका जग जननी गिरी राय ।
दया करो हे चंडिका विनऊ शीश नवाय ॥

॥ इति जीन माता चालीसा संपूर्णम् ॥

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